Wednesday, 25 December 2013

रोचक तथ्य



टूथ पेस्ट खरीदने से पहले ...

टूथ पेस्ट खरीदने से पहले ...
क्या आपने टूथ पेस्ट खरीदने से पहले कभी ध्यान
दिया है.....?
हर टूथ पेस्ट के निचले सिरे पर किसी न किसी रंग
की पट्टी होती है.
क्या आप इन रंगों का अर्थ जानते हैं..??
Green : Natural.
Blue : Natural + Medicine.
Red : Natural + Chemical
composition.
Black : pure chemical.
कृपया इस जानकारी को share कर अन्य बन्धुओं
को भी जाग्रत करें..



Merry Christmas.

Christmas ka yeh pyara tyohaar jeevan mein laye khushiyan apaar,
Santa clause aaye aapke dwar, subhkamna hamari kare sweekar.
Merry Christmas.



Thursday, 24 October 2013

दोस्ती ...


कहो उसी से जो ना कहे किसी से

मांगो उसी से जो दे दे खुशी से,

चाहो उसे जो मिले किस्मत से ...

और दोस्ती करो उसी से जो हमेशा

निभाए हंसी से .....


Thursday, 17 October 2013

SAPNE

SAPNE का पहला लफ्त S होता है
लेकिन अगर S को निकाल दो तो
APNE रह जाता है और  APNE साथ हो
तो SAPNE जरूर पूरे होते हैं। 

आदते अलग है हमारी दुनिया से



आदते अलग है हमारी दुनिया से,
कम दोस्त रखते हैं मगर लाजवाब रखते हैं,
क्योंकि बेशक हमारी माला छोटी है,
मगर फूल उसमें सारे गुलाब रखते हैं।

Tuesday, 1 October 2013

गणेश पूजन की तस्वीरें

अपने क्लब मेंबर के साथ 

यूं ही पंडाल में 

नमस्कार 





महाआरती 

Thursday, 4 July 2013

Friend Circle

Why is group of friends called
Friend Circle”?
Becauce square has 4 ends.
triangle has 3 ends.
Line has 2 ends.
But circle has NO END.

Monday, 1 July 2013

मोहब्बतें

मोहब्बत का मतलब इंतजार नहीं होता,
हार किसी को देखना प्यार नहीं होता,
यूं तो मिलते हैं रोज मोहब्बतें पैगाम
प्यार है जिंदगी जो हर बार नहीं होता …….!!!

मोहब्बत किसी ऐसे शख्स की तलाश नहीं
जिस के साथ राहा जाए...
मोहब्बत तो ऐसे शख्स की तलाश है
जिस के बगैर न रहा जाए..!

अक्सर प्यार करने वाले अपनी चाहत की तारीफ करते है,
ताकि वो उनसे जुदा न हो जाए,
हम इसलिए खामोश रहते है,
ताकी कोई और आप पर फिदा न हो जाए...!

दोस्ती


दोस्ती में इतना प्यार लाओ
कि देखने वाले दंग हो जाए!
दुश्मन भी आके तुमसे पूछे,
क्या हम भी तुम्हारे दोस्त बन जाएं....

Badlon ko aata dekh

Badlon ko aata dekh k muskuraliya hoga
kuch na kuch masti men gunguna liya hoga
Allah ka shukar ada kiya barish k honey se
K is bahaney tum ney naha liya hoga

Jab barish hoti hai


Jab barish hoti hai, Tum yaad aate ho.
Jab kali ghata chaye, Tum yaad ate ho,
Jab bheegte hain tum yaad aate ho,
Bataoo Meri umbrella Kab wapis kro ge!

Friday, 28 June 2013

जहां आज भी गूंज रहे हैं इतिहास और संस्कृति के गौरवशाली मल्हार

-सुजाता साहा
देवनगरी मल्हार में प्राचीनता के अनुरूप दर्शनीय ऐतिहासिक  धार्मिक स्थलों का बाहुल्य है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से 32 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण- पश्चिम में स्थित है मल्हार नगर। मल्हार का शायद ही ऐसा कोई पुराना घर या मकान हो, जिसकी दरो- दीवार पर पत्थर और लकड़ी की देव प्रतिमाएं उत्कीर्ण  हों। यहां के कण- कण में ताम्र एवं पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक गौरवशाली इतिहास और संस्कृति बिखरी पड़ी है। पातालेश्वर महादेव और डिडिनेश्वरी देवी के कारण आस्था का केंद्र भी है मल्हार नगर।
भगवान शिव ने मल्लासुर नामक असुर का संहार किया तो उन्हें मल्लारि की संज्ञा मिली। इसी मल्लारि नाम से बसे इस शहर का नाम कालांतर में मल्लाल और अब मल्हार हो गया है। मल्हार में मिले 1164 के एक पुराने कलचुरि शिला लेख में इसके मल्लालपत्तन होने की पुष्टि भी होती है।
देवनगरी मल्हार में प्राचीनता के अनुरूप दर्शनीय ऐतिहासिक  धार्मिक स्थलों का बाहुल्य है। पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्यों से मल्हार में स्थित संस्कृति  इतिहास की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इतिहासकार के अनुसार कलचुरी शासकों से पहले इस क्षेत्र में कई अभिलेखों में शरभपुर राजवंश के शासन का उल्लेख मिलता है। इसलिए मल्हार को प्राचीन राजधानी शरभपुर मानते हैं।
मल्हार में इस वर्ष से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उत्खनन शाखा- नागपुर उत्खनन का कार्य करा रही है। यह काम तीन साल तक चलेगा। मल्हार के दक्षिण भाग में चल रहे उत्खनन में पुरावशेष और भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं, जो 6वीं शताब्दी के बताए जाते हैं। प्रारंभिक खुदाई में जो तस्वीर उभरी है उससे पता चलता है कि मल्हार में कल्चुरियों के समय किस तरह के मकान बने थे, जहां उस काल में बनीं नालियां, कुएं, बर्तन, औजार आदि की झलक दिखाई देती है।
मल्हार में खुदाई के दौरान करीब 25 सौ साल पहले के अवशेष मिल रहे हैं। ऊपरी सतह की खुदाई में चतुर्थ काल में विशेष प्रकार के मिट्टी के पात्र जिनमें ठप्पों से बना अलंकरण  स्वर्ण लेप  कुछ में अभ्रक का लेप है प्राप्त हुई हैं।। इसके अलावा पत्थर  ईंटों से बनी दीवार, चबूतरे, नाली, लौह निर्मित दैनिक उपयोग की वस्तुएं जैसे कीलें, तेलकुप्पी, हंसिया, बरछी, भाला, तीर छुरी, कीमती पत्थरों के मनके, मिट्टी के मनके, मृदभांड के टुकड़े, पक्की मिट्टी के बने गोलादार आदि शामिल है।
1975 से 1978 के बीच मल्हार गांव परिक्षेत्र में सबसे पहले उत्खनन का काम सागर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति  पुरातत्व विभाग के प्रमुख प्राध्यापक केडी बाजपेयी द्वारा कराया गया था। इसके बाद पुरातत्व विभाग की ओर से यहां फिर खुदाई नहीं हुई थी।
विकसित नगर था मल्हार
मल्हार में दसवीं- ग्यारहवीं सदी से लेकर शरभपुरी और कलचुरी राजाओं के समय की निर्मित प्रतिमाएं और मंदिर हैं। लगभग उस काल के प्रचलित सभी धर्मों से संबंधित मूर्तियां एवं सामग्रियों का मिलना यहां के शासकों की धार्मिक सहिष्णुता एवं सभी धर्मों के प्रति आदर समभाव को भी प्रमाणित करती है।
मल्हार नगर उत्तर भारत से दक्षिण- पूर्व की ओर जाने वाले प्रमुख मार्ग पर होने के कारण धीरे- धीरे विकसित हुआ। तब यहां शैव, वैष्णव  जैन धर्मावलंबियों के मंदिरों, मठों  मूर्तियों का निर्माण बड़े स्तर पर हुआ। मल्हार में चतुर्भुज विष्णु की एक अद्वितीय प्रतिलिपी मिली है। उस पर मौर्यकालीन ब्राम्हीलीपि लेख अंकित है।
सातवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य विकसित मल्हार की मूर्तिकला में गुप्तयुगीन विशेषताएं स्पष्ट नजर आती हैं। मल्हार में बौध्द स्मारकों तथा प्रतिमाओं का निर्माण इस काल की विशेषता है। बुध्द, बोधिसत्व, तारा, मंजुश्री, हेवज्र आदि अनेक बौध्द देवों की प्रतिमाएं  मंदिर मल्हार में प्राप्त हुई हंै। छठवीं सदी के पश्चात यहां तांत्रिक बौध्द धर्म का भी विकास हुआ। जैन तीर्थंकरों, यक्ष- यक्षिणियों, विशेषत: अंबिका की प्रतिमांए भी यहां मिली हैं 
मल्हार में पहले और अब तक हुई खुदाई से इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि यह क्षेत्र मौर्य काल से लेकर कल्चुरी काल तक एक उन्नत नगर के रूप में विकसित था। क्षेत्र ऐतिहासिक काल से लेकर कलचुरी काल तक विविध राजवंशों के आधीन था, जिनमें सातवान, शरभपुरीय, सोमवंश, पांडुवंश  कल्चुरी वंश शामिल हैं।
पतालेश्वर मंदिर (केदारेश्वर मंदिर)
दसवीं से तेरहवीं सदी तक के समय में मल्हार में विशेष रूप से शिव- मंदिरों का निर्माण हुआ। इनमें कलचुरी संवत् 919 (1167 ईसवीं) में निमर्ति केदारेश्वर मंदिर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस मंदिर का निर्माण सोमराज नामक एक ब्राम्हण द्वारा कराया गया। काले चमकीले पत्थर की गौमुखी आकृति  जलहरी में चढ़ाया गया जल इसके आंतरिक छिद्रों से नीचे जाता रहता है। पौराणिक मान्यता है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया यह जल पाताल लोक तक पहुंचता है, इसलिए इसे पतालेश्वर महादेव कहा गया है। मंदिर में गंगा, यमुना नदी की प्रतिमा के साथ ही शिव, पार्वती, गणेश, नंदी आदि के बेजोड़ अंकन हंै।
धूर्जटि महादेव का अन्य मंदिर कलचुरि नरेश पृृथ्वीदेव द्वितीय के शासन- काल में उसके सामंत ब्रम्हदेव द्वारा कलचुरी संवत् 915 (1163 ईसवी) में बनवाया गया। इस काल में शिव, गणेश, कार्तिकेय, विष्णु, लक्ष्मी, सूर्य तथा दुर्गा की प्रतिमाएं विशेष रूप से निर्मित की गयीं। कलचुरी शासकों, उनकी रानियों आचार्यो तथा गणमान्य दाताओं की प्रतिमाओं का निर्माण उल्लेखनीय है। मल्हार में ये प्रतिमाएं प्राय: काले ग्रेनाइट पत्थर या लाल बलुए पत्थर की बनायी गयीं हैं। स्थानीय सफेद पत्थर और हलके- पीले रंग के चूना- पत्थर का प्रयोग भी मूर्ति- निर्माण हेतु किया गया।
डिडिनेश्वरी मंदिर
कलचुरी काल में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित डिडिनेश्वरी देवी की प्रतिमा अंचल में सिद्धपीठ देवी के रूप में पूजी जाती है। प्रत्येक चैत्र  क्वांर नवरात्रि के दौरान यहां हजारों की संख्या में मनोकामना दीप जलते हैं। दूर- दराज से भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है और लोग मां के दर्शन कर जीवन धन्य करते हैं।
सांस्कृतिक विरासत का संग्रहालय
मल्हार में पुरातत्व विभाग का एक संग्रहालय है, जिसमें उत्खनन से प्राप्त बहुत सी सामग्री संग्रहित की गई है। इसमें शिव, गणेश, विष्णु के विभिन्न रूप के अलावा दुर्गा, लक्ष्मी, पार्वती, सरस्वती, गंगा- यमुना की नदी, गरुड़, नृसिंह, हनुमानजी, सूर्य, नाग नागिन के जोड़े की आकर्षक प्रतिमाएं भी यहां आने वाले पर्यटकों को मल्हार के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत से रूबरू कराती हैं।
यहां पहुंचने एवं ठहरने के लिए रायपुर (148 कि. मी.) सबसे निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम एवं चेन्नई से जुड़ा हुआ है। हावड़ा- मुंबई रेल मार्ग पर बिलासपुर (32 कि. मी) सबसे समीप रेल्वे स्टेशन है। बिलासपुर शहर से बस द्वारा भी मस्तूरी होकर मल्हार तक सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है। यहां से निजी वाहन भी उपलब्ध रहते है। मल्हार में सरकारी विश्राम गृह के अलावा आधुनिक सुविधाओं से युक्त अनेक होटल ठहरने के लिये उपलब्ध हैं।