Thursday 28 May 2020

बचपन की चुलबुलाहट से लेकर एक सशक्त महिला तक का सफर तय करती, गाँजे की कली

देश की सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम की छत्तीसगढ़ी कहानी पर आधारित व राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित फ़िल्म गाँजे की कली योगेन्द्र चौबे के निर्देशन में तैयार की गई यह फिल्म दर्शकों के सामने एक सवाल छोड़ती है। आमतौर पर बनने वाली छत्तीसगढ़ी फिल्मों से यह फिल्म काफी अलग है। एक विद्रोह करने वाली महिला पर आधारित फिल्म है, जो बचपन की चुलबुलाहट से लेकर एक सशक्त महिला तक का सफर तय करती है। छत्तीसगढ़ की पहली कला फ़िल्म गाँजे की कली यु ट्यूब में रिलीज हो चुकी है। इस फ़िल्म को देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी अच्छी प्रतिक्रिया आ रही है। देश भर में फ़िल्म रंगमंच साहित्य कला से जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया आ रही है। अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड,आस्ट्रेलिया नेपाल में रहने वाले भारतीयों द्वारा भी इस फ़िल्म को देखा व पसंद किया गया। है।छत्तीसगढ़ की इस कला फ़िल्म को अब तक 4 हजार से अधिक व्यूज मिल चुके हैं। 

बचपन की चुलबुलाहट से लेकर एक सशक्त महिला तक का सफर तय करती, गाँजे की कली

गाँजे की कली यह पहली छत्तीसगढ़ी फ़िल्म है जो छत्तीसगढ़ से बाहर निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। इस फ़िल्म की पहली स्क्रिनिग जागरण अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल के तहत दिल्ली व मुम्बई रायपुर में हुई थी। फिर देश के कई शहरों भोपाल, ग्वालियर खैरागढ़, रायगढ़, वर्धा नागपुर, इलाहाबाद , गोरखपुर बिलासपुर में इसका विशेष प्रदर्शन भी किया गया।


भारतीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित अभिनेत्री नेहा सराफ का रंगमंच का अनुभव सघन है। इस फिल्म में भी वे चुलबुली लडक़ी से लेकर एक सशक्त महिला का किरदार , बड़ी सहजता के साथ निभाती हैं, जो कि दर्शक को गंभीर विमर्श के लिए तैयार करता है । नेहा बॉलीवुड की कई चर्चित फिल्मों हीरोइन, लुका छिपी ,ड्रीमगर्ल जैसी फिल्मों में उन्होंने काम किया है। इसके साथ ही अघनिया के पिता की भूमिका में दीपक तिवारी ' विराट ' का सहज अभिनय उनकी रंगमंच के परिश्रम का फलन है। पूनम तिवारी द्वारा निभाए किरदार द्वारा अघनिया को रंगीलाल के यहां से भागने में मदद करना, पुरुषवादी मानसिकता से उपजे नारी के मानसिक शोषण के विरुद्ध क्रांति - बिगुल है जिसने पूरी कहानी को मोड़ दिया। दीपक तिवारी और पूनम तिवारी हबीब तनवीर व नया थियेटर के चर्चित अभिनेता -अभिनेत्री हैं जिनके गीत व अभिनय की चर्चा देश भर में होती है। फिल्म के अंत में कर्मा गीत पूनम तिवारी के स्वर में धोखे के बाद उपजी निराशा का प्रतीक है, पर कहानी आगे बढ़ती है और आपको निराश नहीं करती। 


छत्तीसगढ़ की सत्य घटना पर आधारित फ़िल्म में राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के कलाकारों ने काम किया है। इस फ़िल्म की पटकथा व संवाद राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित अशोक मिश्रा ने लिखी है इसी तरह फ़िल्म की एडिटिंग असीम सिन्हा द्वारा किया गया है। असीम सिन्हा बॉलीवुड के मशहूर एडिटर है ज़ेडप्ल्स, वेलडन अब्बा, वेलकम टू सज्जनपुर, मोहल्ला अस्सी, संविधान जैसे कई फिल्मों के एडिटर हैं। तकनीकी दृष्टिकोण से भी यह ऐसी पहली फ़िल्म है जो सिंक साउंड है इस फ़िल्म में डबिंग नहीं किया गया, बल्कि लोकेशन साउंड रिकार्ड किया गया है। इसके साउंड डिजाइनर संतोष कुमार है। इस फ़िल्म के सिनेमेटोग्राफर राजीब शर्मा हैं जिन्हें फोटो ग्राफी के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चुका है। फ़िल्म का टाइटल भी अनोखा है इसका डिजाइन रायपुर की एनिमेटर आस्था कपिल चौबे द्वारा किया गया है। फ़िल्म में संगीत छत्तीसगढ़ के युवा संगीत निर्देशक चंद्रभूषण वर्मा ने दिया है।