Friday 28 June 2013

पानी बचाने के लिए बिल

- सुजाता साहा
पानी बचाने के लिए अब तक सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर वैसे ठोस प्रयास नहीं किए गए जो पानी की कमी को देखते हुए करना चाहिए था। लेकिन जब मामला बहुत ही गंभीर हो गया तो अब जाकर पानी की बर्बादी को रोकने के लिए सरकार ने पानी पर भी बिजली की तरह मीटर लगाने का प्रावधान रखने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरु कर दिया है।
लोग बिजली के बिल के रूप में जब मोटी रकम चुकाते हैं तब कहीं जा कर वे बिजली के महत्व को समझ पाते हैं और बिजली का खर्च सोच समझकर आवश्यकता के अनुसार करते हैं, लेकिन पानी के मामले में ऐसा नहीं है। इसी मामले को सुलझाने के लिए तथा अनावश्यक बहते पानी पर अंकुश लगाने के लिए बिजली की तरह ही पानी के लिए भी मीटर लगाए जाने पर विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विचार किया गया है और कहीं- कहीं तो यह लागू भी हो गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इस बात को गंभीरता से लिया है।
केंद्र सरकार द्वारा उपयोग के आधार पर बिल भुगतान करने की पेयजल व्यवस्था को लेकर दी गई गाइड लाइन के अनुसार भिलाई नगर निगम ने कार्य भी शुरु कर दिया है।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या केंद्र के मापदंड के मुताबिक बेहतर पेयजल व्यवस्था लागू हो पाएगी। मापदंड के अनुसार उस क्षेत्र में नल कनेक्शन सौ फीसदी रहना चाहिए। वाटर सप्लाई लीकेज रहित होना चाहिए। पानी की क्वालिटी निर्धारित मापदंडों के अनुरूप होनी चाहिए। नान रेवेन्यु वाटर कम से कम अर्थात 10 फीसदी से कम होनी चाहिए। निगम 24 घंटे पानी सप्लाई करने में सक्षम हो।
यह सोचना कि इन मापदंडों पर राज्य सरकारें खरी उतरेंगी या नहीं यह दूर की बात है फिलहाल तो खुश होना चाहिए कि इस योजना के लागू होने से पानी की महत्ता के प्रति लोग जागरूक हों।
क्योंकि अब यहीं एकमात्र सबसे कारगर तरीका बच गया है ताकि लोग पानी की मितव्ययता को समझ सकें। अब तक होता यही था कि घरों में पानी के उपयोग पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं था। कितना भी पानी का उपयोग करे या फिर पीने के पानी से अपनी गाडिय़ां धोएं, घर का आंगन धोएं या फिर नल चालू है तो चालू ही रहने दें, उन्हें तो साल में पानी के लिए एक निर्धारित रकम ही नगर निगम को देनी पड़ती है।
लेकिन अब बिजली की तरह जब पानी का बिल भी उनके घर हर माह आयेगा तब तो वे पानी के महत्व को समझेंगे। इस प्रकार से लोग सोच समझकर बिल के भय से जरूरत के मुताबिक पानी का उपयोग कर सकेंगे।
अब सोचने वाली बात यह है कि पानी जैसी जीवनदायी आवश्यकता को लेकर पक्ष- विपक्ष राजनीति करेगा या इस विषय पर गंभीरता से विचार करते हुए पानी बचाने की मुहिम में अपनी अह्म भूमिका निभाएगा। आप सब भी इस विषय पर जरा सोचें? कहीं ऐसा न हो कि राजनीतिक लाभ- हानि के फेर में पड़कर एक अच्छी सोच ठंडे बस्ते में चली जाए।


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