Thursday, 27 June 2013

जिंदगी को संवारते हाथ


डॉ. सुनील कालड़ा से बातचीत पर आधारित

जिंदगी को संवारते हाथ

- सुजाता साहा
डॉ. सुनील कालड़ा
प्लास्टिक सर्जरी के आविष्कार ने आज मनुष्य की उम्र को पछाड़ दिया है यही वजह है कि सितारें फिल्मी और माडलिंग की दुनिया में 50-55 की उम्र तक भी छाएं रहते हैं। उनके चेहरे और शरीर पर झुर्रियों के निशान ऐसे मिट जाते हैं कि उम्र का पता ही नहीं चलता। मेडिकल साइंस के आविष्कार प्लास्टिक सर्जरी ने अनुवांशिक विकृतियों को दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ही है साथ ही बदसूरत चेहरे से निराश लोगों के लिए जीने के लिए आशा की किरण भी जगाई है।
पहले         बाद में
मनुष्य अपना रंग- रूप जन्म से ही लेकर आता है। उसके नाक- नक्श उसका सौंदर्य कुदरती होता है लेकिन कुछ बच्चे अनुवांशिक कारणों से कटे- फटे होंठ, टेठे मेढ़े दांत, चपटी नाक और बेडौल चेहरा लेकर पैदा होते हैं। जिसे अंधविश्वास के कारण हमारे समाज में पूर्वजन्म का अभिशाप, बुरे कर्म का नतीजा तथा भगवान की मर्जी मानते हुए ऐसे बच्चों को हेय दृष्टि से देखते हैं। अगर इन अनुवांशिक विकृतियों को बचपन में ही दूर न किया जाए तो बड़े होकर बच्चे हीनग्रंथि के शिकार हो जाते हैं। तथा समाज में सहज होकर उनके जीने की इच्छा खत्म हो जाती है।
आज मेडिकल साइंस ने इतनी अधिक तरक्की कर ली है कि उपरोक्त अनुवांशिक विकृति को भी आसानी से दूर किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित कालड़ा कॉस्मेटिक सर्जरी इंस्टीट्यूट एडवान्सड बर्न एंड ट्रामा सेंटर एक ऐसा अस्पताल है जहां डॉ. सुनील कालड़ा ऐसे बच्चों की जिंदगी को संवारने में लगे हैं।
डॉ. कालड़ा दिनभर में लगभग 15-20 ऑपरेशन करते हैं। उन्होंने विकृत हो चुके लगभग 1 लाख से ज्यादा लोगों के जीवन को खुशियों से भर दिया है लेकिन दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए डॉ. कालड़ा को बहुत लंबा संघर्ष करना पड़ा है।
6 जनवरी 1960 रायपुर में जन्मे डॉ. सुनील कालड़ा छत्तीसगढ़ के ही नहीं बल्कि देश के प्रसिद्ध प्लास्टिक सर्जनों में से एक जाने जाते हैं। अपने परिवार में डॉ. सुनील सबसे छोटे हैं। पिता आर. एल. कालड़ा, माता कृष्णा, दो बहनें शारदा व नीतू तथा बड़े भाई अनिल हैं। यूं तो डॉ. कालड़ा एक समृद्ध परिवार में पैदा हुए थे रायपुर के शारदा चौक के पास कालड़ा परिवार की साइकल दुकान थी।  साथ ही साथ ठेकेदारी का काम भी करते थे। लेकिन सुनील की पैदाइश के चार साल बाद ही उनके पिता का एक दुर्घटना में देहांत हो गया। मां जो पांचवी तक पढ़ी थीं उन पर परिवार का पूरा भार आ गया। और दो वक्त का भोजन भी मुश्किल से जुटने लगा। आर्थिक विपत्ति के इस संघर्ष ने कालड़ा परिवार को बजाए कमजोर करने के और मजबूत बना दिया। सुनील तब छोटे थे। दोनों बहनें ट्यूशन आदि करके और बड़े भाई किसी तरह 12वीं की शिक्षा के बाद नौकरी करने लगे।
इन सब मुसीबतों के साथ परिवार में जो सबसे बड़ी मुसीबत आई वह थी मां की बीमारी। मां को पथरी हो गया उनका असहनीय दर्द देखकर सुनील बेचैन हो जाया करते थे और इसी बीच उन्होंने निर्णय लिया कि वे डॉक्टर बनकर लोगों का दर्द दूर करेंगे। तब परिवार को भी लगा कि सुनील को डॉक्टर ही बनाएंगे। इस तरह सुनील ने रायपुर में एमबीबीएस और एमएस पास किया और सर्जरी की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए। लेकिन डॉ. कालड़ा केवल कटे फटे होंठ ठीक करने वाले सर्जन नहीं बनना चाहते थे बल्कि वे सर्जरी के अन्य क्षेत्रों में भी महारत हासिल करना चाहते थे जिसे पूरा करने के लिए मुम्बई में प्रेक्टिस के दौरान वे स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम के साथ रहकर सर्जरी की बारीकियां सीखने लगे। बगैर पैसा लिए लगातार अन्य डॉक्टरों के साथ काम करते हुए डॉ. कालड़ा ऐसे सर्जन बन चुके हैं जिनके पास हर उस बिगड़े हुए रंग- रूप का इलाज है जो कभी लाइलाज माना जाता था। हर तरह की सर्जरी में परिपक्वता हासिल कर लेने के बाद अंत में उन्होंने रायपुर में अपना अस्पताल खोल लिया।
पिछले दिनों अपने कुछ सवालों के साथ जब मैं उनके अस्पताल पहुंची तो बेहद व्यस्त होने के बाद भी उन्होंने बातचीत करना स्वीकार कर लिया।
डॉ. कालड़ा से मैंने पूछा प्लास्टिक सर्जरी को ही आपने क्यों अपनाया? 
उन्होंने बताया कि मैं सर्जरी के क्षेत्र में कुछ अलग करना चाहता था। मुझे प्लास्टिक सर्जरी के क्षेत्र ने आकर्षित किया क्योंकि इसमें मुझे लोगों की जिंदगी बचाने के साथ- साथ उनकी जिंदगी संवारने का भी मौका मिल रहा था।
आपकी दिनचर्या क्या है और मरीजों से आपके संबंध कैसे हैं?
मरीज हैं तो हम हैं। मैं उन्हें पूरा सर्पोट करता हूं। उन्हें चिकित्सा सुविधा के मामले किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ न हो इसके लिए मैं स्वयं 24 घंटे अपनी सेवा देता हूं। मैं एक डॉक्टर हूं इसलिए हर पीडि़त व्यक्ति का सदैव तत्पर रहकर इलाज करना मेरा प्रथम कत्र्तव्य हैं जिसे मैं पूरा कर रहा हूं। ...और हां किसी भी बीमारी को दूर करने के लिए काउंसिलिंग जरूरी है। काउंसिलिंग के द्वारा ही अपने मरीजों का उत्साहवर्धन करता हूं। यही वजह है कि वे जब ठीक होकर घर वापस जाते हैं तो आत्मविश्वास से लबरेज होते हैं।
अनुवांशिक विकृतियों का इलाज क्या किसी खास उम्र में ही संभव है?
कटे फटे होंठ से पीडि़त बच्चों का ऑपरेशन 3 से 6 माह के बीच हो जाना चाहिए इसी तरह विकृत तालू से पीडि़त बच्चों का ऑपरेशन एक साल तक की आयु में होना चाहिए। पैरेंट्स खुद ही अपने बच्चों की कमी दूर करने के लिए हमसे कंसल्ट करते हैं।
कोई ऐसा केस जो आपके जेहन में आज भी ताजा है?
ऐसे तो बहुत से केस हैं परंतु रायपुर की रिज़वाना का केस मेरे लिए एक चुनौती था। रिजवाना हिपो (Fibrous Dysplacia) से पीडि़त थी। उसका चेहरा इतना विकृत था कि वह अपना चेहरा भी आईने में नहीं देखती थी और अपना चेहरा हमेशा कपड़े से ढकी रहती थी। बहुत जगह से निराश होकर आखिर में रिज़वाना मेरे पास आई। आज वह बिल्कुल स्वस्थ और सुंदर बन चुकी है। उसकी शादी हो गई और वह अपने बच्चों के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रही है। एक लड़की ऐसी भी आई थी जिसके पास एश्वर्या राय के हर एंगल से दिखने वाले 200 फोटो थे वह कहती थी कि मुझे एश्वर्या जैसी ही नाक चाहिए। मैंने उसकी नाक वैसी तो नहीं बनाई क्योंकि उसका चेहरा बड़ा था जिस पर एश्वर्या की नाक फिट नहीं बैठती थी। इसलिए मैंने उसके चेहरे के अनुरूप नाक बनाई। इस तरह ऐसे बहुत से केस आते हैं कि उन्हें वैसी ही नाक, वैसी ही आंख आदि चाहिए। परंतु यह संभव नहीं क्योंकि हर किसी के चेहरे की बनावट अलग होती है उसपर क्या अच्छा लगेगा यह देखकर  ही उसके चेहरे बनावट में बदलाव किया जाता है। एक दूसरा मामला सेक्स चेंज का था। जिसमें माइकल नामक एक लड़का जिसका शरीर तो लड़के का था परंतु उसे लड़कियों की तरह रहना पसंद था। उसने अपना सेक्स बदलवाया। आज वह एलीना बनकर सबके सामने है। उसने खुद अपने बारे में मीडिया को जानकारी दी जबकि सेक्स चेंज जैसे मामलों को लोग छिपाना चाहते हैं। एलीना आज एक समाजसेविका के रूप स्थापित है।
आर्थिक रूप से इलाज में असमर्थ लोगों के लिए अस्पताल में क्या सुविधाएं है?
सबसे पहले मेरी कोशिश होती है कि पैसे के अभाव में कोई गरीब मेरे अस्पताल से निराश होकर न लौटे। मैं हर चेहरे को मुस्कुराता हुआ देखना चाहता हूं। आर्थिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए ऑपरेशन मुस्कान, स्माइल ट्रेन, कृष्णा हेल्थ केयर फाउन्डेशन प्रोगेसिव क्लब के तहत उनका नि:शुल्क इलाज होता है।
आपके पास किस प्रकार के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं?
मेरे पास ज्यादातर लोग अपने चेहरे की सुंदरता के लिए आते हैं जैसे असामान्य नाक की कास्टमेटिक सर्जरी, बाल प्रत्यारोपण, अनचाहे बाल हटाने, वक्ष को सही आकार देने, टैटू मिटाने, हाथ- पैर के कटे हिस्से को जोडऩे, चमकती त्वचा के लिए, चेहरे की झाईयां, दाग धब्बे, झुर्रिया मिटाने, आग से जले झुलसे शरीर को सही रूप में ढालने, आड़े तिरछे चेहरों को ठीक करवाने, आंखों को एक समान बनाकर सुंदरता प्रदान करवाने, तिल बनाने व हटाने, मोटापा कम करवाने वाले केस के साथ  लड़कियां गालों पर डिंपल व नाभी में न्यू लुक देने आती हैं। ऐसी भी लड़कियां आती हैं जो एश्वर्या राय और कैटरीना कैफ जैसी खूबसूरत फिल्मी हिरोइनों के फोटो दिखा कर कहती हैं कि हमारी नाक या हमारे होंठ इनके जैसे बना दीजिए।
डॉ. कालड़ा ने आगे बताया कि आज के दौर की पीढ़ी अपने जीवनसाथी को परफेक्ट चाहती है अगर कोई कमी है तो उसे  पहले दूर करना चाहते हैं। शहरी क्षेत्रों के अलावा गांवों में भी ऐसी जागरूकता आई हैं जिसमें युवक अपनी जीवन संगिनी को सुंदर बनाने के लिए कास्मेटिक सर्जरी की सहारा ले रहे हैं। 
लोग आधुनिकता के चलते हीरो- हीरोइन की तरह दिखना चाहते है और अपने अच्छे भले प्राकृतिक चेहरे को बदलना चाहते है यह कहां तक उचित है?
हम प्राकृतिक चेहरे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करते बल्कि खराब चेहरे को सुंदर बनाते है और रही पूरे चेहरे की सर्जरी तो हम चेहरा बदलने से पूर्व उसकी छानबीन करते है कहीं कोई क्रिमिनल तो नहीं है जो अपना पहचान छुपाना चाह रहा हो, ऐसी दशा में हम सर्जरी नहीं करते लेकिन अगर किसी का चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया हो, शादी में प्राब्लम आ रही हो, प्यार में धोखा या कोई और जैनविन प्राब्लम हो तो सर्जरी की जाती है।
प्लास्टिक सर्जरी के क्षेत्र में भारत दूसरे देशों के मामले में पिछड़ा हुआ माना जाता है आप क्या सोचते है?
पहले लोगों की सोच थी कि हीरे जवाहरात पहनने से खूबसूरती बढ़ती है, परंतु जब चेहरा ही सुंदर ना हो तो कितने भी भारी गहनें क्यों न पहने जाएं आप सुंदर नहीं लग सकते। जबकि सुंदरता तो सादगी में होती है। अब लोग जागरूक हो रहे हैं वे सोने चांदी के गहने खरीदने के बजाए अपने चेहरे की खूबसूरती पर पैसा लगा रहे हैं। उदाहरण के लिए ब्राजील जैसे देश में लोग अपनी सुंदरता के प्रति काफी जागरूक हैं। वहां कॉस्मेटिक सर्जरी वाउचर मिलता है। जिसे लोग गिफ्ट के तौर पर देते हैं। ये चलन भारत में भी शुरु होना चाहिए।
अंत में मैंने डॉ. कालड़ा से उनके परिवार के बारे में पूछा उन्होंने बताया पत्नी डॉक्टर नीलिमा पैथालॉजिस्ट हैं, बेटी कृति एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं और बेटा हार्दिक अभी 10 वीं में है जिसका रूझान भी मेडिकल में है।
इस प्रकार अपने परिवार के साथ डॉ. कालड़ा व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अपने अस्पताल में छोटी सी टीम के साथ कार्य करते हुए सुखी और संतुष्ट जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इलाज के बाद मरीज के चेहरे पर मुस्कान देखकर उन्हें असली संतुष्टि मिलती है।

मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है

डॉ. कालड़ा के अस्पताल में कुदरती कमी की वजह से हीनता से ग्रसित बहुत से लड़कियों और लड़कों का आत्मविश्वास लौट आया है। और वे सब आज सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ लोगों से हमने बातचीत की और जाना कि वे इलाज के बाद अब कैसा महसूस करते हैं। जिन्होंने अपनी आपबीती सुनाई उनके नाम बदल दिए गए हैं-
प्रिया ने 3 साल पहले अपने मोटे नाक की सर्जरी कराई थी। प्रिया का कहना है कि मोटे नाक की वजह से उसका मजाक बनाया जाता था लेकिन सर्जरी के बाद जब नाक को अलग शेप दिया गया तो मेरी खूबसूरती और मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ गया। इसी तरह रीता ने भी अपनी नाक की सर्जरी कराई रीता के माता- पिता ने बताया कि रीता की नाक चेहरे के अनुरूप काफी दबी हुई थी। जिस वजह से उसकी शादी में रुकावट आ रही थी। उसके अंदर हीन भावना आ गई थी। हमने करीब दो-ढाई साल पहले डॉ. कालड़ा से संपर्क किया और रीता की नाक को नया रूप दिया। उनके माता पिता गर्व से कहते हैं कि डॉ. कालड़ा की वजह से ही आज उनकी बेटी अपने ससुराल में सुखी जीवन व्यतीत कर रही है।
संध्या एक ऐसी मां जो डिजाइनर कपड़ों की शौकीन है परंतु उसकी बेटी श्रुती को वह डिजाइनर कपड़े नहीं पहना सकती थी क्योंकि उसके हाथ में चोट का निशान है। श्रुति हमेशा पूरी बांहों वाले कपड़े ही पहनती थी। 10 साल की उम्र में एक एक्सीडेंट में लगी चोट का निशान उसके हाथ में था। लेकिन हाल ही मैंने उस निशान को सर्जरी द्वारा ठीक करवाया। आज श्रुति भी डिजाइनर कपड़े पहन सकती है। अब उसे अपना हाथ छिपाने की जरूरत नहीं।
डॉ. कालड़ा से निम्न पते पर संपर्क किया जा सकता है- कालड़ा कॉस्मेटिक सर्जरी इंस्टीट्यूट एडवान्सड बर्न एंड ट्रामा सेंटर, राजकुमार कालेज के पास, चौबे कालोनी, रायपुर (छत्तीसगढ़)
उनका मोबाइल नंबर है- 9827143060 तथा ईमेल आईडी है- sunilkalda@rediffmail.com

पुरस्कार एवं सम्मान

डॉ. सुनील कालड़ा को उनके बेहतर कार्य के लिए कई पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। जिसमें प्रमुख है। शहीद वीर नारायण सिंह अवार्ड 2010, बी सी राय अवार्ड 2008, इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी अवार्ड 2010, जी न्यूज अवार्ड 2011, जी न्यूज ऑनर से सम्मानित 2003,  ट्राइबल वर्क के उत्थान के लिए प्रतिभा पाटिल से मुलाकात व सम्मान। जी24 घंटे विहान सम्मान 2011 और ऑपरेशन मुस्कान पर पुस्तक प्रकाशित।

ऑपरेशन मुस्कान

 ऑपरेशन मुस्कान एक ऐसी संस्था है जो पिछड़ी जनजातियों में व्याप्त जन्मजात विकृतियों का नि:शुल्क इलाज करता है। पूरे भारत में 75 विशेष पिछड़ी जनजाति अधिसूचित है जिसमें से छत्तीसगढ़ राज्य में 5 विशेष पिछड़ी जनजाति कवर्धा एवं बिलासपुर में बैगा, रायपुर एवं धमतरी में कमार, नारायणपुर में अबूझमाडिय़ा, कोरबा, जशपुर सरगुजा में पहाड़ी कोरबा एवं रायगढ़ तथा जशपुर जिले में बिरहोर विशेष पिछड़ी जनजाति के लोग निवासरत हैं। जन्मजात विकृतियों जैसे कटे- फटे होंठ, तालू की विकृति आदि का नि:शुल्क इलाज कराने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास है 'ऑपरेशन मुस्कान'।
अमेरिका के न्यूयार्क में चाल्र्स ब्राउन द्वारा 1999 में स्माइल टे्रन नामक समाज सेवी संगठन की स्थापना की गई है जिसका उददेश्य विश्व में कोई भी व्यक्ति कटे- फटे होंठ एवं विकृत तालू से पीडि़त न रहे। इस उद्देश्य को चरितार्थ करते हुए विश्व के 76 देशों में स्माइल ट्रेन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम का आगमन भारत में 2000 से एवं छत्तीसगढ़ में यह कार्यक्रम 1 जनवरी 2005 में हुआ है। छत्तीसगढ़ में स्माईल ट्रेन तथा अन्य सामाजिक संगठनों के माध्यम से 'ऑपरेशन मुस्कान' नामक अभियान के तहत डॉ. कालड़ा के क्लिनिक में नि:शुल्क ऑपरेशन कर पीडि़त लोगों के चेहरे में मुस्कान लाकर उनके जीवन में खुशियां भरने का एक बहुत बड़ा प्रयास है। 

संपर्क-  ईमेल sujatasaha06@gmail.com
उदंती ( अप्रैल 2012) में प्रकाशित   

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