Friday 28 June 2013

बूंदों में जाने क्या नशा है...

- सुजाता साहा
बारिश में जब आप रेन कोट या छतरी लेकर सड़क पर निकलते हैं तो ढेरों मुसीबतें झेलनी पड़ती है जो इस भीगे मौसम के नशे को फीका करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसलिए बूंदों में जाने क्या नशा है ... गाते हुए कुछ पल के लिए तन मन को भीगोने आए इस सुहाने मौसम को हाथ से फिसल कर जाने मत दीजिए।
बरसात... एक बहुत आनंदित करने वाला एहसास है। बारिश की बूंदे तन को ही नहीं, मन को भी भीतर तक भिगो देती हैं। पानी की बूंदे पेड़ों की पत्तियों को नहलाती हुई धरती के अंतस में समा जाती हैं। बारिश से नहाई धरती को देखकर प्रफुल्लित मन बरबस ही प्रकृति को करीब से निहारने के लिए मचल उठता है।
यह सब पढ़कर आप कह सकते हैं कि यह सब तो किताबी बातें हैं, कवि मन की कल्पनाएं हैं, क्योंकि जब भी आप इस खुशनुमा मौसम में बरसती बूंदों का आनंद लेने के लिए कहीं जाने के बारे में सोचते हैं तो सड़कों का हाल देखकर आपको रोना आ जाता होगा, क्यों सही कहा ना मैंने? 
लेकिन जहां जीवन में खूबसूरती है वही कुछ गंदगी भी है। सुख और दुख की तरह हमें दोनों को स्वीकार करके चलना पड़ता है। इसलिए जिस प्रकार बरसात अपने साथ हरियाली लाती है उसी प्रकार कई बाधाएं भी लाती है। जिस तरह आप बरसात में हरियाली को देखकर खुश होते हैं उसी प्रकार कीचड़ देखकर मन दुखी हो जाता है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि आप सिर्फ दूसरे पक्ष को ही देखें, आप इसके उजले पक्ष को देखना शुरु कीजिए फिर देखिए किस तरह आप प्रफुल्लित होकर गाने लगेंगे... बूंदों में जाने क्या नशा है, छम छम इठलाती बूंदे, तन मन पिघलाती बूंदे...।
बारिश का मौसम है तो आप सिर्फ सड़कों का रोना मत रोइए। और ऐसा मत सोचिए कि हम क्या कर सकते हैं। बल्कि हम ही बहुत कुछ कर सकते हैं। जरूरत है आपको थोड़ा सा अपने आप को बदलने की।
कुछ लोग बारिश का मौसम देखा और निकल पड़ें अपने कार में सैर करने को। रास्ते में गड्ढा दिखा तो कार की रफ्तर धीमी करने के बजाए तेजी से कार वहां से निकाल लेते हैं। नतीजन वहां चल रहे लोगों पर कीचड़ की छींटें पड़ी। अगर आप भी ऐसा करते हैं तो अपनी इस आदत को सुधार लीजिए।
जैसे जब हम अपनी चार पहियों वाली गाड़ी में बैठकर फर्राटे से पानी भरे गड्ढ़ों से गाड़ी दौड़ाते हैं तो राह चलते राहगीर की ओर तो देख ही सकते हैं। यदि देख सकते हैं तो क्यों न हम पानी वाली जगह पर गाड़ी की रफ्तार धीमी करके शालीनता का परिचय दें। इस काम में तो हम किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा ना। 
इसी तरह अकसर देखा गया है कि जब हम किसी परिचित के घर मिलने जाते हैं और वहां से विदा लेते वक्त बारिश शुरु हो जाती है तो मेजबान छाता, रेनकोट देकर अपनी शालीनता का परिचय देता है ताकि हम भीगे नहीं। लेकिन क्या हम उन चीजों को लौटाते वक्त भी उतनी ही तत्परता दिखाते हैं? या लिया हुआ सामान न लौटाने का आपने संविधान बना लिया है। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि उन चीजों को सही समय पर लौटाकर हम अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभा सकते है। क्योंकि जिन्होंने आपको बारिश से भीगने से बचाया है उन्हें भी इस मौसम में इन सबकी जरूरत है। तो यह काम तो हमें ही करना होगा ना किसी दूसरे को नहीं।
कौन होगा जो अपने घर को साफ सुथरा नहीं रखना चाहता। तभी तो कई मेजबान कृपया जूता चप्पल बाहर उतारे कहने में संकोच नहीं करते। जो यह बात कहने का साहस नहीं जुटा पाते। इसका यह मतलब तो नहीं कि हम उनके साफ सुथरे घर और कालीन को कीचड़ से सने अपने जूते- चप्पल से रौंदते चले जाएं। कोई कहें या नहीं कहे हमें जूते चप्पल बाहर उतारकर ही अपनी समझदारी का परिचय देना चाहिए। यह हमारा उत्तरदायित्व है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बोलने के बावजूद भी अपने जूते चप्पल बाहर नहीं उतारते।
यह तो हुई बारिश में दूसरों का ख्याल रखने की बात अब थोड़ा सा अपना भी ध्यान रख लिया जाए। रिमझिम बारिश  हो और पकौड़े खाने न मिले तो फिर ऐसी बारिश का क्या मतलब। पर मौसम का बहाना लेकर तली हुई चीजें बाहर खाकर कहीं हम बीमारी को आमंत्रण तो नहीं दे रहे। बरसात तो खैर बहाना है तली, गरम चीजें खाने का, किन्तु इन दिनों बाहर खाना कितना नुकसानदायक हो सकता है इसे भी जरा सोच लें खासकर बच्चों के खानपान को लेकर लापरवाही तो बिल्कुल भी नहीं। तो बाहर का खाना न खाकर जान है तो जहान है को सार्थक कर ही सकते है। बाहर का ही नहीं घर में भी पकौड़े या अन्य तेल की चीजें जरूरत से ज्यादा खाकर कहीं हम अपनी सेहत के दुश्मन तो नहीं बन रहे और निरोगी काया के फार्मूले को झूठला रहे।
यह सब कहने यह मतलब नहीं कि आप बरसात में पकौड़े का मजा ही न लें। बिल्कुल लें बल्कि अपने दोस्तों और परिचितों को भी इसमें शामिल करें, क्योंकि बारिश में जब आप रेन कोट या छतरी लेकर सड़क पर निकलते हैं तो ढेरों मुसीबतें झेलनी पड़ती है जो इस भीगे मौसम के नशे को फीका करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसलिए बूंदों में जाने क्या नशा है ... गाते हुए कुछ पल के लिए तन मन को भीगोने आए इस सुहाने मौसम को हाथ से फिसल कर जाने मत दीजिए।
उदंती (जुलाई 2012) में प्रकाशित 

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